देहरादून, 29 जून: अगर दिल में कुछ करने की चाह हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बनते जाते हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, उत्तराखंड की बेटी रीना राठौर (Reena Rathore) ने। रीना राठौर मूल रूप से उत्तराखंड के टिहरी जिले की रहने वाली है और एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है। रीना राठौर का चयन अब उत्तराखंड पुलिस में बतौर डिप्टी एसपी के तौर पर हुआ है।
पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय नरेंद्र नगर में आयोजित पासिंग आउट परेड में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने रीना राठौर को सर्वोत्तम प्रदर्शन करने पर स्वार्ड आफ आनर से सम्मानित किया। रीना राठौर का परिवार खेती व किसानी के लिए जाना जाता है। रीना की पढ़ाई पहाड़ के आम बच्चों की तरह सरकारी स्कूलों में हुई। बता दें, रीना अपने पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी है, जिसके कारण उनके कंधों पर सभी की जिम्मेदारी थी।
रीना राठौर ने पढ़ाई के साथ सभी की जिम्मेदारी भी बाखूबी निभाई। पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल होने के चलते रीना राठौर हर कक्षा में पहले स्थान पर आई। उच्च शिक्षा के लिए वह ऋषिकेश आईं, जहां उन्होंने पंडित ललित मोहन शर्मा राजकीय स्नातकोत्तर कॉलेज से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान रीना को तत्कालीन सीएम भुवनचंद्र खंडूड़ी द्वारा बेहतर मार्क्स आने पर स्कॉलरशिप के तौर पर 55 हजार रुपए भी दिए गए थे।
रीना आईएएस की तैयारी करने के लिए दिल्ली चली गईं। आईएएस की तैयारी के दौरान रीना का चयन खंड विकास अधिकारी के पद पर हुआ, लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं किया। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग से परीक्षा देने के बाद उनका चयन उप शिक्षा अधिकारी के पद पर हुआ। उन्होंने इस पद पर रहते हुए द्वारीखाल, नारसन व रुड़की में कुछ साल नौकरी भी की।
लेकिन रीना ने पुलिस सेवा ज्वाइन करने के लिए ये जॉब भी छोड़ दी। कानून व्यवस्था से जुड़ने की चाह के कारण रीना राठौर का चयन अब उत्तराखंड पुलिस में बतौर डिप्टी एसपी हुआ है। बता दें, 24 जून को पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय नरेंद्रनगर में हुई पासिंग आउट परेड में सीएम तीरथ सिंह रावत ने रीना राठौर को सर्वोत्तम प्रदर्शन करने पर स्वार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया।
रीना राठौर ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘उनका सपना चिकित्सक बनकर जरूरतमंदों की सेवा करना था, लेकिन डाक्टरी की पढ़ाई में खर्चा अधिक होने के कारण वह एमबीबीएस नहीं कर पाईं। उनके मामा ने उन्हें आईएएस की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया था।’ रीना राठौर ने बताया कि पहाड़ में पांचवीं कक्षा के बाद अंग्रेजी का पाठ्यक्रम शुरू होता है, जिसके कारण बच्चों का नवोदय विद्यालय में दाखिला नहीं हो पाता।
राठौर ने कहा, जब वह द्वारीखाल में उप शिक्षा अधिकारी थीं तो उन्होंने कुछ शिक्षकों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट सुपर 50 चलाया। खुद के खर्चे पर बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दी, जिसकी बदौलत 15 से अधिक बच्चों का दाखिला नवोदय विद्यालय में हो पाया।
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